उसी की रौशनी रहती है इस क़दर मुझ में जो उस के लौट के आने की है ख़बर मुझ में छुआ था जिन में कभी मुझ को तेरी चाहत ने वो लम्हे जागते रहते हैं रात भर मुझ में जो रास्ते के अँधेरों से डर के लौट गया वो काश देखता ज़िंदा थी इक सहर मुझ में मुझे डरा नहीं सकती ये मुश्किलों की धूप अभी उम्मीद का बाक़ी है इक शजर मुझ में तिरे वजूद को छू ले तो फिर मुकम्मल हो भटक रही है ख़ुशी कब से दर-ब-दर मुझ में