उसी को दोस्त रखा दूसरा बनाया नहीं कई बनाते हैं मैं ने ख़ुदा बनाया नहीं ये बस्ती रात का किस तरह सामना करेगी यहाँ किसी ने भी दिन में दिया बनाया नहीं पता करो कि ये नक़्क़ाश किस क़बील का है परिंदा जब भी बनाया रिहा बनाया नहीं ये लोग ज़ुल्म कमा कर शब ऐसे सोते हैं ख़ुदा ने जैसे कि रोज़-ए-जज़ा बनाया नहीं लहू भी जलता है झड़ती है ख़ाक भी मेरी कि शे'र उतरता है लेकिन बना-बनाया नहीं वो मेहरबाँ है मगर भूलता नहीं मुझ को वो एक काम जो उस ने मिरा बनाया नहीं उदास देखा नहीं जाता कोई मुझ से 'अक़ील' किसी को इस लिए हाल-आश्ना बनाया नहीं