उसी को राज़ बताया जो राज़दार न था भरोसा जिस पे जताया वो पाएदार न था जुनून उसे भी रहा आँधियों पे क़ब्ज़े का जिसे ख़ुद अपनी ही साँसों पे ए'तिबार न था नदी के पार पहुँचने में कितने डूब गए पता चला कि नया कुछ नदी के पार न था मगर ये बात भी बारिश के बाद साफ़ हुई फ़ज़ा में गर्द थी आईने पर ग़ुबार न था निशाने-बाज़ी में तुम भी कमाल हो 'वासिक़' शिकार हो गया वो भी कि जो शिकार न था