उस के दिल में ये क्या समाई बात ग़ैर से मेरी जा लगाई बात उस को किस ने ये जा सुनाई बात ग़ैर के हाथ कैसे आई बात कुछ कहा उस ने जब तो फूल झड़े वाह क्या रुख़ पे रंग लाई बात ये बुरी बात है बचा ख़ुद को छुप के सुनता है क्यों पराई बात उस से क्या कहना चाहता था मैं भूल कर भी न याद आई बात क्यों हुआ मुझ पे मेहरबाँ इतना कौन सी उस को मेरी भाई बात मैं हमेशा रहा हूँ मोहर-ब-लब मैं ने कब की है जग-हँसाई बात कर दिया राज़ ख़ुद ही तश्त-अज़-बाम क्यों ज़बाँ पर ये तेरी आई बात अब तअस्सुफ़ फ़ुज़ूल है 'ख़ावर' तू ने ख़ुद ही कहाँ छुपाई बात