उस के हरीम-ए-नाज़ में तेरा गुज़र कहाँ ऐ दिल ये सच बता कि रहा रात भर कहाँ मंज़िल से दूर गुम-शुदा-ए-कारवाँ हूँ मैं आएँ मिरी मदद के लिए हैं ख़िज़र कहाँ उज़्लत-नशीन-ए-ख़ल्वत-ओ-मस्त-ए-ख़याल बन फिरता रहेगा ख़ाक बना दर-ब-दर कहाँ मजबूर-ए-इश्क़ हूँ कि उठाता हूँ अपने हाथ गो जानता हूँ मैं कि दुआ में असर कहाँ इक दास्तान-ए-शौक़ मिरे दिल में है अभी बातें हुई हैं यार से जी खोल कर कहाँ वो मेरे घर पे आएँ न आएँ बुला ही लें 'एजाज़' मेरा ऐसा मुक़द्दर मगर कहाँ