उस ने ग़ैरों की तरह मेरी पज़ीराई की बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की ख़्वाब था या कि सराब आह हुजूम-ए-गुज़राँ फ़िक्र है अब तो शरीक-ए-ग़म-ए-तन्हाई की ख़ून-ए-दिल को शब-ए-तारीक में रौशन कर के हम ने ता-उम्र यूँ ही अंजुमन-आराई की तेज़-तर होती गई फ़िरक़ा-परस्ती की हवा धज्जियाँ ख़ूब उड़ाई गईं यकताई की मसअले कितने भी उलझे हों सुलझ सकते हैं बंद कमरों में जो बातें न हों दानाई की