उतर कर दिल में दिल पर बार क्यों है मोहब्बत जान का आज़ार क्यों है रवा हो या दुआ बे-कार क्यों है यहाँ इतना कोई नाचार क्यों है यहाँ दामान-ए-शौक़-ओ-आरज़ू में गुल-ए-तर क्यों नहीं है ख़ार क्यों है इलाज-ए-दर्द-ए-दिल होते हुए भी दिगर-गूँ हालत-ए-बीमार क्यों है ये दिल में दर्द ये आँखों में आँसू ये लब पर आह-ए-आतिश-बार क्यों है किसी के नाम से मंसूब हो कर कोई रुस्वा मह-ए-बाज़ार क्यों है ज़बाँ भी जब नहीं मुँह में किसी के किसी के हाथ में तलवार क्यों है ख़ता कोई नहीं लेकिन ख़ता का किसी के सामने इक़रार क्यों है किसी की सरफ़रोशी से किसी को नहीं मालूम ये इंकार क्यों है किसी को इस क़दर इस बे-रुख़ी पर ख़याल-ए-ख़ातिर-ए-दिलदार क्यों है किसी के ज़ुल्म-हा-ए-ना-रवा की जो पहले थी वही रफ़्तार क्यों है चलो जाने भी दो इस गुफ़्तुगू को इसी इक बात की तकरार क्यों है नहीं सुनता अगर कोई किसी की किसी को इस क़दर इसरार क्यों है भरोसा है अगर अपने पे 'हैरत' तो फिर ये मिन्नत-ए-अग़्यार क्यों है