उतरी है आसमाँ से जो कल उठा तो ला ताक़-ए-हरम से शैख़ वो बोतल उठा तो ला लैला के दिल में क़ैस निकल आएगी जगह तू सर पर आज नज्द का जंगल उठा तो ला धोना है दाग़-जामा-ए-एहराम सुब्ह सुब्ह हुजरे से शैख़ पानी की छागल उठा तो ला मुझ को भी इंतिज़ार था अब्र आए तो पियूँ साक़ी अगर ये सच है कि बादल उठा तो ला वो हुस्न-ए-वज़्अ देखेंगे क्यूँकर जुड़े हैं दिल ज़र-गर नई बनी है जो हैकल उठा तो ला ताक़-ए-हरम में शैख़ गुलाबी है फूल सी इस काम का मिलेगा तुझे फल उठा तो ला बन जाए दिन ये तीरा-शब-ए-हिज्र ऐ नदीम रौशन था जिस से तूर वो मशअ'ल उठा तो ला मैं काम लूँगा अब्र का ऐ रिंद तान कर तू मुझ फ़क़ीर-ए-मस्त का कम्बल उठा तो ला ऐ शैख़ मेज़ से दम-ए-इफ़्तार फ़र्श पर पीने को फूल खाने को कुछ फल उठा तो ला नासेह का मुँह हो बंद चखा दूँ शराब-ए-ख़ुल्द साक़ी ज़रा 'रियाज़' की बोतल उठा तो ला