उठा जो दस्त-ए-सितम क़त्ल-ए-बे-नवा के लिए निगाह-ए-शौक़ ने बोसे हर इक अदा के लिए महक है तेरे शबिस्ताँ की बू-ए-ज़ुल्फ़-ए-सबा चली है बाद-ए-सबा इक शिकस्ता-पा के लिए सुनो कि दिल को मिरे ए'तिबार-ए-ज़ीस्त नहीं रुका हूँ एक नफ़स अर्ज़-ए-मुद्दआ के लिए मिरे ख़याल ने पहना लिबास-ए-हर्फ़-ओ-निदा सरीर-ए-ख़ामा है रक़्साँ मिरी नवा के लिए दयार-ए-दिल तो हुआ वक़्फ़-ए-आहुवान-ए-जवाँ अब और कोई बनाएँगे घर ख़ुदा के लिए मिरे ख़याल को क़ैद-ए-मकाँ क़ुबूल नहीं हुदूद-ए-बहर-ओ-बयाबाँ नहीं हवा के लिए रही नज़र में हमारे उरूस-ए-शौक़-ए-मुदाम फ़ना-ए-ज़ीस्त रहे ज़ीस्त की बक़ा के लिए किसे बताएँ कि हम ने पिला के ख़ून-ए-जिगर चमन में फूल खिलाए तिरी क़बा के लिए ख़याल-ओ-रंग-ओ-नुक़ूश-ओ-हुरूफ़-ओ-लौह-ओ-क़लम बिछे हैं दाम जमाल-ए-गुरेज़-पा के लिए