उठा के ग़म तिरा ऐ ज़िंदगी न रोएँगे हमारा वा'दा रहा अब कभी न रोएँगे हम अपने सीने पे रख लेंगे ज़ब्त का पत्थर अगर है इस में तुम्हारी ख़ुशी न रोएँगे हमारे ग़म ने तुम्हें फिर से कर दिया है उदास तुम्हारे सामने अब हम कभी न रोएँगे हम अपनी शिद्दत-ए-एहसास को छुपा लेंगे सुना के अपनी कभी बेबसी न रोएँगे ग़मों का बोझ उठा लेंगे हम अकेले ही यक़ीन कीजिए हम वाक़ई न रोएँगे