उठाने वाले ये इक बात है बताने की जबीन-ए-शौक़ से ज़ीनत थी आस्ताने की मैं इस अदा को न क्यूँ सुब्ह-ए-दाइमी कर लूँ ठहर कि खींच लूँ तस्वीर मुस्कुराने की तुम्हारी आँखों में ये सुर्ख़ सुर्ख़ डोरे हैं झलक रही है कि सुर्ख़ी मिरे फ़साने की तुझे ख़बर भी है 'नख़शब' से रूठने वाले तिरे बदलते ही बदली नज़र ज़माने की