उठती घटा है किस तरह बोले वो ज़ुल्फ़ उठा कि यूँ बर्क़ चमकती क्यूँकि है हँस के ये फिर कहा कि यूँ चोरी से उस के पाँव तक पहुँची थी शब को किस तरह आ कहीं हाथ मत बँधा कह दे अब ऐ हिना कि यूँ दिन को फ़लक पे कहकशाँ निकले है क्यूँकि ग़ैर-ए-शब चीन-ए-जबीं दिखा मुझे उस ने दिया बता कि यूँ जैसे कहा कि आशिक़ाँ रहते हैं क्यूँकि चाक-जेब उस को गुल-ए-चमन दिखा कह के चली सबा कि यूँ हो गए बर-सर-ए-ख़लिश ले के सिनाँ जो ख़ार-ए-दश्त कर ने कलाम तब लगा क़ैस-ए-बरहना-पा कि यूँ पूछे है वो कि किस तरह शीशा-ओ-जाम का है साथ कह दे मिला के चश्म से चश्म को साक़िया कि यूँ करते सफ़र हैं किस तरह बहर-ए-जहाँ से ऐ हुबाब ख़ेमे को अपने लाद कर कर दे ये उक़्दा वा कि यूँ