उठे हैं हाथ दुआ के उस आदमी के लिए जो काम करता है दुनिया की बेहतरी के लिए इलाज क्या अगर इस पर भी ठोकरें खाएँ मिला ज़मीर है इंसाँ को रौशनी के लिए खिलाए फूल कई फल किए कहीं पैदा हज़ार ने'मतें पैदा कीं आदमी के लिए नई हयात का पैग़ाम देती है जब मौत तो जान किस लिए दे कोई ज़िंदगी के लिए ख़ुशी के मारे न बचते अगर न होता ग़म सहारा ग़म का ज़रूरी है ज़िंदगी के लिए जहाँ में कोई नहीं ग़म से जो नहीं वाक़िफ़ किसी को ग़म है कोई ग़म कोई किसी के लिए क़दम क़दम पे यहाँ एहतियात लाज़िम है मक़ाम-ए-ऐश जहाँ कब है आदमी के लिए रह-ए-अदम है यहाँ सर झुका के चल 'सूफ़ी' ये रहगुज़र है ख़तरनाक ख़ुद-सरी के लिए