उट्ठा हूँ इक हुजूम-ए-तमन्ना लिए हुए दुनिया से जा रहा हूँ मैं दुनिया लिए हुए मुद्दत से गरचे जल्वा-गह-ए-तूर से ख़मोश आँखें हैं अब भी ज़ौक़-ए-तमाशा लिए हुए दुनिया-ए-आरज़ू से किनारा तो कर के देख दुनिया खड़ी है दौलत-ए-दुनिया लिए हुए रोज़-ए-अज़ल से इश्क़ है नाकाम-ए-आरज़ू दिल है मगर हुजूम-ए-तमन्ना लिए हुए ऐ कम-निगाह दीदा-ए-दिल से निगाह कर हर ज़र्रा है हक़ीक़त-ए-सहरा लिए हुए हस्ती की सुब्ह कौन सी महफ़िल का है मआल आँखें खुली हैं हसरत-ए-जल्वा लिए हुए दिन-भर मिरी नज़र में है वो यूसुफ़-ए-बहार आती है रात ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा लिए हुए दिल फिर चला है ले के तिरे आस्ताँ की सम्त अपनी शिकस्तगी का सहारा लिए हुए वो दिन कहाँ कि थी मुझे जीने की आरज़ू फिरता हूँ अब तो दिल का जनाज़ा लिए हुए