वादा-ए-वस्ल और वो कुछ बात है हो न हो इस में भी कोई घात है ख़ल्क़ नाहक़ दरपय-ए-इसबात है है दहन उस का कहाँ इक बात है बोसा-ए-चाह-ए-ज़नख़दाँ ग़ैर लें डूब मरने की ये ऐ दिल बात है घर से निकले हो निहत्ते वक़्त-ए-क़त्ल ये भी बहर-ए-क़त्ल-ए-आशिक़ घात है मैं ने इतना ही कहा बनवाओ ख़त ये बिगड़ने की भला क्या बात है ब'अद मुद्दत बख़्त जागे हैं मिरे बैठे हैं सोने को सारी रात है क्या करूँ वस्फ़-ए-बुतान-ए-ख़ुद-पसंद इन से बढ़ कर बस ख़ुदा की ज़ात है बातों बातों में जो मैं कुछ कह गया हँस के फ़रमाने लगे क्या बात है हर्फ़-ए-मतलब साफ़ कह सकता नहीं है अदब माने कि पहली रात है मुझ से हो इज़हार-ए-उल्फ़त वाह-वा आप के फ़रमाने की ये बात है रो रहे हैं हम मिला दे लब से लब मय-कशी हो साक़िया बरसात है ज़च है तेरी चाल से रफ़्तार-ए-चर्ख़ मोहर-ए-रुख़ से बाज़ी-ए-मह मात है कैसी कटती है सियह-बख़्ती में उम्र रात से दिन दिन से बद-तर रात है छेड़ता है दिल को क्या ऐ दर्द-ए-हिज्र ख़ुद गिरफ़्तार-ए-हज़ार-आफ़ात है ऐ ग़नी दे सीम-ओ-ज़र वक़्त-ए-बला माल-ए-दुनिया जान की ख़ैरात है गर जगह दिल में नहीं फिर इस से क्या ये दोशम्बे की ये बुध की रात है साफ़ कह दे तू यहाँ आया न कर यार ये सौ बात की इक बात है लख़्त-ए-दिल हैं मेरे खाने को 'अमीर' बस इन्हीं टुकड़ों पे अब औक़ात है