वफ़ा का इम्तिहाँ है जान-आे-तन की आज़माइश है ख़ुदा रक्खे ख़ुदी के बाँकपन की आज़माइश है ब-तर्ज़-ए-नौ सजाई जा रही है बज़्म-ए-पर्वेज़ी ब-अंदाज़-ए-दिगर फिर कोहकन की आज़माइश है लब-ए-जू साक़िया यूँ ही मुसलसल दौर-ए-पैमाना कि ज़ोर-ए-गर्दिश-ए-चर्ख़-ए-कुहन की आज़माइश है ख़िज़ाँ का ज़िक्र क्या वो दौर था ना-साज़-गारी का बहार आई है अब अहल-ए-चमन की आज़माइश है मिरी दीवानगी का इम्तिहाँ इक बात है वर्ना हक़ीक़त में तिरे दार-ओ-रसन की आज़माइश है तवाफ़-ए-किरमक-ए-नादाँ का चक्कर ख़त्म है 'आसिफ़' बस अब ज़र्फ़-ए-चराग़-ए-अंजुमन की आज़माइश है