वफ़ा की फ़स्ल फिर बोने चली हूँ मैं क्या पाऊँगी बस खोने चली हूँ जुनूँ की हद से भी आगे क़दम है न जाने और क्या होने चली हूँ ये मुमकिन तो नज़र आता नहीं है अना को अपनी मैं धोने चली हूँ समुंदर आ गया मेरे मुक़ाबिल जब उस ने देखा मैं रोने चली हूँ यही नेकी मुझे ज़िंदा रखेगी कि बोझ औरों का मैं ढोने चली हूँ रही हूँ मुज़्तरिब ख़ुद को भी पा कर फिर अपने आप को खोने चली हूँ उतर आई है याद आँखों में तेरी मैं तेरे वास्ते सोने चली हूँ बहुत है बारिश-ए-आलाम 'रूमी' हिफ़ाज़त को किसी कोने चली हूँ