वफ़ादार हो या जफ़ा-कार तुम हो जो कुछ हो सो हो पर मिरे यार तुम हो उजाड़ो मिरे दिल को या फिर बसाअो मिरी जान इस घर के मुख़्तार तुम हो जुदा सब से हो और सब से मिले हो ग़रज़ क्या कहूँ एक अय्यार तुम हो ख़ुदा जानिए दिल पे क्या गुज़रे आख़िर ये अहल-ए-वफ़ा है सितमगार तुम हो बने इस तबीअत से क्यूँकर किसी की ज़रा जी में मुंसिफ़ तो दिलदार तुम हो ख़फ़ा होते हैं हम तो ख़ुश होते हो तुम जो ख़ुश होते हम हैं तो बेज़ार तुम हो नहीं बे-सबब ये 'हसन' सर्द आहें कहीं इन दिनों में गिरफ़्तार तुम हो