वहम है हस्त भी नीस्त भी वहम है दीन-ओ-दुनिया की हर इक गली वहम है कैसी आवाज़ है कान फट जाएँगे है भी या ये मिरा दाइमी वहम है ये तमाशा-ए-इल्म-ओ-हुनर दोस्तो कुछ नहीं है फ़क़त काग़ज़ी वहम है खींच ली है कमाँ मैं ने इज़हार की अब ज़रा फिर कहो ज़िंदगी वहम है इतना हस्सास हूँ जितना कोई नहीं मान लो न 'रज़ा' आख़िरी वहम है