वहम साबित हुए सब ख़्वाब सुहाने तेरे याद करते हैं मगर लोग फ़साने तेरे काश वो दिन न कभी आए कि तू आ जाए रास आते हैं मिरे जी को बहाने तेरे ऐसी उफ़्ताद पड़ी अपनी ख़बर भी न रही हम तो आए थे यहाँ रंग जमाने तेरे कल छुपा रखते थे ख़ुद से भी मोहब्बत अपनी आज आए हैं तुझे दाग़ दिखाने तेरे ख़ल्क़ का ध्यान हटाते रहे काँटे क्या क्या राज़ इफ़शा किए सब बाद-ए-सबा ने तेरे दर्द क्या क्या न मिले शौक़-ए-तलब से अपने ज़ख़्म क्या क्या न दिए ज़ौक़-ए-हया ने तेरे जुज़ तिरे चाहने वाला था न उन का कोई लौट कर आए न 'शोहरत' वो ज़माने तेरे