वहम-ओ-गुमाँ ने आस बँधाई तमाम रात आहट ख़िराम-ए-नाज़ की आई तमाम रात मजबूर हो के मैं ने मोहब्बत की छाँव में तारों को दिल की बात सुनाई तमाम रात मसरूर हो के चाँद ने इक चाँद के लिए क्या चाँदनी ज़मीं पे बिछाई तमाम रात खा कर तरस गुदाज़ी-ए-सोज़-ए-फ़िराक़ पर अश्कों ने दिल की आग बुझाई तमाम रात याद आप की है आप से बढ़ कर करम-नवाज़ आप इक घड़ी को आए वो आई तमाम रात तस्वीर उन की सामने रख कर ब-सद-अलम रूदाद-ए-इज़्तिराब सुनाई तमाम रात दर पर निगाह दिल में तड़प रूह मुज़्तरिब तकलीफ़-ए-इंतिज़ार उठाई तमाम रात चश्म-ए-'जली' ने हसरत-ए-जल्वा लिए हुए अश्कों से बज़्म-ए-इश्क़ सजाई तमाम रात