वहाँ भी ज़हर-ज़बाँ काम कर गया होगा कि आदमी था वो बातों से डर गया होगा थी मैं भी उस पे हँसी मिल के इस जहाँ के साथ ये सुन के शर्म से शायद वो मर गया होगा हज़ार बार सुना फिर भी दिल नहीं माना कि मेरे प्यार से दिल उस का भर गया होगा नए मकीन हैं अब वाँ उसे ख़बर कब थी बड़े ख़ुलूस से वो मेरे घर गया होगा कोई दरीचा खुला रह गया था आँधी में मिरा वजूद यक़ीनन बिखर गया होगा वो जानता तो है महफ़िल के भी सभी आदाब जो देख कर नहीं उट्ठा तो डर गया होगा न हो जो सत्ह पे हलचल तो इस से ये न समझ चढ़ा हुआ था जो दरिया उतर गया होगा