वही गेसुओं की उड़ान है वही आरिज़ों का निखार है ये किसी की शान-ए-वरूद है कि मिरी नज़र का वक़ार है तिरी ख़ुद-पसंद नवाज़िशें मिरा जी लुभा के गुज़र गईं मगर उफ़ ये दीदा-ए-मुतमइन जो गदा-ए-राहगुज़ार है अभी कोंपलों में वो रस कहाँ जो गुलों का रूप बदल सके अभी गुल-फ़रोश के हाथ से हमें एहतियाज-ए-बहार है मिरी सादगी के ख़ुलूस ने तुझे बख़्श दी वो बरहनगी जो नफ़स नफ़स की है तिश्नगी जो नज़र नज़र की पुकार है यही दिल-फ़रेब तजल्लियाँ मुझे दो-जहाँ से अज़ीज़ हूँ मगर ऐ जमाल-ए-सहर-नुमा मिरा घर जो तीरा-ओ-तार है ग़म-ए-ज़ात से मिरी ज़िंदगी ग़म-ए-काएनात में ढल गई किसी बज़्म-ए-नाज़ में खो के भी मुझे काएनात से प्यार है