वही ख़राबा-ए-इम्काँ वही सिफ़ाल-ए-क़दीम हुमक रहा है कहीं दिल में इक ख़याल-ए-क़दीम खड़ा हूँ जैसे अभी तक अज़ल के ज़ीने पर नज़र में है वही नज़्ज़ारा-ए-जमाल-ए-क़दीम फ़िराक़-रात में ज़िंदा रहे कि ज़िंदा थी हमारी रूह में सरशारी-ए-विसाल-ए-क़दीम मिरा वजूद हवाला तिरा हुआ आख़िर तो खा गया ना मुझे तू मिरे सवाल-ए-क़दीम ये हब्स-ए-वक़्त ये ला-इंतिहा घुटन की रुतें बरस के खुल भी कभी अब्र-ए-एहतिमाल-ए-क़दीम 'सईद' कहने को क्या कुछ बदल गया लेकिन वही है तू वही ज़िंदान-ए-माह-ओ-साल-ए-क़दीम