वही कि जिस में ग़ुरूर-ए-शही मिलाया गया मिरा ख़मीर उसी ख़ाक से उठाया गया अब उस पे चाँद सितारे भी रश्क करते हैं वो इक दिया जो कभी दश्त में बुझाया गया उगेगी फ़स्ल मज़ाफ़ात में बग़ावत की फ़सील-ए-शहर से मुझ को अगर गिराया गया मगर मैं ज़ात के सहरा में महव-ए-रक़्स रहा मुझे भी कोह-ए-निदा की तरफ़ बुलाया गया मिरे लिए तेरे खेतों में भूक उगती है मिरे लिए तो ये गुलशन नहीं सजाया गया