वही ना-सबूरी-ए-आरज़ू वही नक़्श-ए-पा वही जादा है कोई संग-ए-रह को ख़बर करो उसी आस्ताँ का इरादा है वही अश्क-ए-ख़ूँ के गुलाब हैं वही ख़ार ख़ार है पैरहन न करम की आस बुझी अभी न सितम की धूप ज़ियादा है अभी रौशनी की लकीर सी सर-ए-रहगुज़ार है जाँ-ब-लब किसी दिल की आस मिटी नहीं कहीं इक दरीचा कुशादा है तन-ए-ज़ख़्म ज़ख़्म को छोड़ दे मिरे चारागर मिरे मेहरबाँ दिल-ए-दाग़ दाग़ का हौसला तिरी मरहमत से ज़ियादा है जो नज़र बचा के गुज़र गए तो न आ सकोगे पलट के तुम बड़ी मोहतरम है ये बेबसी कि ख़ुलूस-ए-जाँ का लिबादा है यही ज़िंदगी है बुरी-भली ये कशीदा सर ये बरहना-पा न ग़ुबार-ए-राह से मुज़्महिल न सुकून-ए-जाँ का इआदा है मिरा इफ़्तिख़ार वफ़ा तलक मुझे रास आ न सका 'अदा' तिरा नाम जिस पर लिखा रहा वो किताब आज भी सादा है