वही सब से बड़ी होती अगर तेरी कमी होती भलाई गर भली होती सदी ये क्या सदी होती मुसाफ़िर वो पलट आता अगर आवाज़ दी होती झरोके गर खुले होते यहाँ भी रौशनी होती किनारा ढूँढ ही लेती न कश्ती गर फँसी होती वो आँसू पोंछने आया वगर्ना याँ नदी होती ज़रा सा वक़्त को रोके कहीं ऐसी घड़ी होती जहाँ इंसाँ बराबर हो कोई ऐसी गली होती 'तबस्सुम' इक कहानी थी अगर तुम ने पढ़ी होती