वहीं पर मिरा सीम-तन भी तो है उसी रास्ते में वतन भी तो है बुझी रूह की प्यास लेकिन सख़ी मिरे साथ मेरा बदन भी तो है नहीं शाम-ए-तीरा से मायूस मैं बयाबाँ के पीछे चमन भी तो है मशक़्क़त भरे दिन के आख़ीर पर सितारों भरी अंजुमन भी तो है महकती दहकती लहकती हुई ये तन्हाई बाग़-ए-अदन भी तो है