वहशत फ़िराक़ ख़ौफ़ तिरा ध्यान अल-अमान कितनी बलाएँ हैं मिरी मेहमान अल-अमान आँखों को ख़ीरा कर गया इक जलवा-ए-शरीर और दिल को खा गई तिरी मुस्कान अल-अमान इक सिलसिला जुड़ा था कि फिर आँख खुल गई किस दर्जा हो गया मिरा नुक़सान अल-अमान ऐ हुस्न-ए-दिल-फ़रेब ज़रा देर को फ़रेब करने लगा है हिज्र परेशान अल-अमान ऐ इश्क़-ए-मेहरबान कोई दम कोई दरूद मिलता नहीं कोई भी निगहबान अल-अमान ऐसे निकलना है तिरी बज़्म-ए-जमाल से जैसे किसी बदन से कोई जान अल-अमान