वहशत से हर सुख़न मिरा गोया ग़ज़ाला है बू से नशा हो ये वो मय-ए-देर-साला है इस आन पर निसार करूँ बज़्म-ए-जाम-ए-जम वो मस्त-ए-नाज़ आज मिरा हम-पियाला है बेगाना देखता हूँ मैं हर गुल का रंग-ओ-बू हम-दाग़ इस चमन में अगर है तो लाला है आए हो अब तो दुख़्तर-ए-रज़ देखते हो क्या मशरब में मय-कशो ये तुम्हारी हलाला है तन्हा नहीं चला हूँ मैं 'हातिम' बुताँ के शहर हम-राह इस सफ़र में मिरा आह-ओ-नाला है