वाजिब-उल-एहतिराम आदमी था जो बड़ा बे-लगाम आदमी था जब भी तोला गया तो आदमी में यही इक दो ग्राम आदमी था वो भी ग़ाएब था अपनी कुर्सी से वो जो क़ाएम-मक़ाम आदमी था करता रहता था कुछ न कुछ ईजाद वो जो इक ना-तमाम आदमी था आदमी बादशह था आदमी का आदमी का ग़ुलाम आदमी था जो दरिंदे थे पढ़ रहे थे नमाज़ और उन का इमाम आदमी था