वजूद अब मिरा ला-फ़ना हो गया फ़ना हो के जुज़्व-ए-बक़ा हो गया मुक़द्दस है आलम में ज़ौक़-ए-फ़ना कि उक़्दा दो-आलम का वा हो गया हुआ आश्कारा अदम से वजूद लिखा था जो तक़दीर का हो गया न हम थे न हंगामा-ए-काएनात खुली आँख और ख़्वाब सा हो गया हक़ीक़त हुआ रफ़्ता रफ़्ता मजाज़ रसा ताले-ए-ना-रसा हो गया तिरा आस्ताना हरम हो कि दैर मुसावात-ए-शाह-ओ-गदा हो गया न कुछ होश अपना न है कुछ ख़बर ख़ुदा जाने 'साहिर' को क्या हो गया