वक़्त बस रेंगता है उम्र के साथ तारा तारा गिना है उम्र के साथ कितना आसान सा तअल्लुक़ था कितना मुश्किल हुआ है उम्र के साथ फिर सफ़र नाम है अज़िय्यत का रास्ता हाँफता है उम्र के साथ किस की आँखों को नींद चुभती है कौन जागा रहा है उम्र के साथ जाने आराम आएगा कब तक दर्द बढ़ने लगा है उम्र के साथ इक गुनह था छुपाए रक्खा था सामने आ गया है उम्र के साथ ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं लगती कोई धोका हुआ है उम्र के साथ सुब्ह-ए-काज़िब से शाम-ए-सादिक़ तक एक महशर बपा है उम्र के साथ कैसा चेहरा है रात की तफ़्सील कौन जल कर बुझा है उम्र के साथ गर्द-ए-माज़ी है वस्ल का हासिल क़ाफ़िला हिज्र का है उम्र के साथ