वक़्त हो रहा है फिर ज़ौ-फ़िशाँ हथेली पर नक़्श हैं मुक़द्दर की सुर्ख़ियाँ हथेली पर महरम-ए-बसीरत था दिल में गड़ गईं आख़िर रोकता भला कब तक बर्छियाँ हथेली पर सर-बुरीदा लोगों का इन दिनों पड़ोसी हूँ और उठाए फिरता हूँ आशियाँ हथेली पर अब के भी नहीं आया अब्र-ओ-बाद का मौसम बूँद को तरसती हैं सीपियाँ हथेली पर जब घरों के आँगन में चाँदनी बिखरती है ख़ून-ए-दिल सजाती हैं लड़कियाँ हथेली पर सेहन-ए-गुल की रौनक़ हैं क़ैद कर नहीं सकते रंग छोड़ जाती हैं तितलियाँ हथेली पर पत्थरों से टकरा कर चूर हो गया 'साग़र' हम सजाए फिरते हैं किर्चियाँ हथेली पर