वक़्त का सैल-ए-रवाँ शाम-ओ-सहर हैं हम लोग जिस की मंज़िल नहीं कोई वो सफ़र हैं हम लोग हम से मिल कर भी ज़माना नहीं वाक़िफ़ हम से अहल-ए-दानिश के हिजाबात-ए-नज़र हैं हम लोग ज़िंदगी कितने अँधेरों से इबारत है मगर ज़ुल्मतों के लिए पैग़ाम-ए-सहर हैं हम लोग इस्तिलाह-ए-रह-ओ-मंज़िल में न ढूँडो हम को रहरव-ए-मंज़िल-ए-बे-राहगुज़र हैं हम लोग खोए खोए से शब-ओ-रोज़ के हंगामों में किस को मालूम कि किस वक़्त किधर हैं हम लोग अपनी बे-नामवरी वज्ह-ए-गराँ-क़द्री है हाथ लग जाएँ तो अनमोल गुहर हैं हम लोग हम को समझोगे तो दुनिया को समझ पाओगे हमा-तन वक़्त की ख़ामोश नज़र हैं हम लोग हम से क़ाएम हैं बहारें चमन-ए-हस्ती की लेकिन अपने लिए इक ज़ख़्म-ए-जिगर हैं हम लोग हुस्न-ए-किरदार को अस्लाफ़ के जब देखते हैं कुछ समझ में नहीं आता कि किधर हैं हम लोग क्या यक़ीन आए ज़माने के बदल जाने का कल भी थे आज भी नश्तर-ब-जिगर हैं हम लोग आरज़ू-ख़ेज़ हो जो वज़्अ-ए-कम-आमेज़ी से 'शौक़' वो रौशनी-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र हैं हम लोग