वक़्त कै बोसीदा काग़ज़ पे रक़म होने को है लम्हा-ए-मौजूद अगले पल जो कम होने को है मेरी वहशत से कभी सैराब था दश्त-ए-जुनूँ अब मिरी दीवानगी का सर क़लम होने को है उस के जानिब-दार हैं सारे मिरा कोई नहीं अल-मदद ऐ दिल सर-ए-पिंदार ख़म होने को है ज़ेहन कहता है ज़ियादा वक़्त लेगा कार-ए-इश्क़ दिल तो कहता है अजी बस एक दम होने को है इक नया तर्ज़-ए-सितम ईजाद करना है उसे इक नई तरकीब से मुझ पे सितम होने को है ऐ ख़ुदा-ए-मय-कदा मेरी मदद को जल्द आ तेरा बंदा आशिक़-ए-दैर-ओ-हरम होने को है ज़िंदगी कुछ रोज़ से क्यूँ मेहरबाँ है बे-सबब क्या किसी आशोब का हम पे करम होने को है खींच लाई जानिब-ए-दरिया हमें भी तिश्नगी अब गुलू-ए-ख़ुश्क का ख़ंजर पे रम होने को है