वक़्त-ए-मुश्किल है प ये वक़्त गुज़र जाएगा यार-ओ-अग़्यार का हाँ फ़ैसला कर जाएगा ठोकरें गर्दिश-ए-अय्याम की गर खाएगा प्यार का भूत तिरे सर से उतर जाएगा कब तलक ज़ब्त करेगा भला सूरज की तपिश फूल तो फूल है इक रोज़ बिखर जाएगा मुद्दतों बाद भी ज़िंदा है बिछड़ कर मुझ से बिन मिरे उस ने कहा था कि वो मर जाएगा शिद्दत-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत में कमी आएगी यार की दीद को तू रोज़ अगर जाएगा रख के आदाब-ए-दुआ पेश-ए-नज़र ऐ दाई' तू दुआ कर तिरा दामन अभी भर जाएगा आएगा ऐसा बुरा वक़्त भी सोचा ही था बेचते अपना हुनर अहल-ए-हुनर जाएगा जाने घर वालों को किस दर्जा मसर्रत होगी सुब्ह का भूला अगर शाम को घर जाएगा तुझ को हो जाएगी दुनिया की हक़ीक़त मा'लूम जब जनाज़ा तिरा मरक़द में उतर जाएगा ज़िंदगी में तो पलट कर उसे देखा ही नहीं बहर-ए-तदफ़ीन मगर सारा नगर जाएगा इश्क़-ए-महबूब की लज़्ज़त हो मयस्सर जिस को जानिब-ए-दार भी बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर जाएगा फ़ैसला होगा अदालत में उसी के हक़ में बहर-ए-क़ाज़ी जो लिए कीसा-ए-ज़र जाएगा दूर से पानी लगेगा प न होगा पानी तिश्ना-लब दश्त में जिस सम्त भी गर जाएगा