वक़्त के बे-ढब रस्तों पर और उल्टी सीधी चाल में ख़ुश देखो कैसे रहते हैं हम दुनिया के जंजाल में ख़ुश जाने वाला साल तो फिर भी जैसे-तैसे बीत गया इस दुनिया को रखना मौला आने वाले साल में ख़ुश इक मंज़र की शादाबी ने यूँ हम को ख़ुश-रंग किया मौसम मौसम फिरते हैं और रहते हैं हर हाल में ख़ुश मर्ग-ए-मोहब्बत और इस के अस्बाब पे आख़िर रोए कौन वो भी ख़ुद में मस्त मगन है मैं भी अपने हाल में ख़ुश तुम माँगे का रेशम पहनो ऐश करो हाँ लेकिन हम ख़ुद-दारी की फटी-पुरानी एक अकेली शाल में ख़ुश इक बच्चे की आँख में जैसे रौशन हो मासूम ख़ुशी बिल्कुल ऐसे होते हैं हम आप के इस्तिक़बाल में ख़ुश