वक़्त के दर पर भी है बहुत कुछ वक़्त के दर से आगे भी शाम-ओ-सहर के साथ भी चलिए शाम-ओ-सहर से आगे भी अक़्ल-ओ-ख़िरद के हंगामों में शौक़ का दामन छूट न जाए शौक़ बशर को ले जाता है अक़्ल-ए-बशर से आगे भी दार-ओ-रसन की रेशा-दवानी गर्दन-ओ-सर तक रहती है अहल-ए-जुनूँ का पाँव रहा है गर्दन-ओ-सर से आगे भी मेरे घर को आग लगा कर हम-सायों को हँसने दो शोले बढ़ कर जा पहुँचेंगे मेरे घर से आगे भी इश्क़ ने राह-ए-वफ़ा समझाई समझाने के ब'अद कहा वक़्त पड़ा तो जाना होगा राहगुज़र से आगे भी शाएर फ़िक्र-ओ-नज़र का मालिक दिल का सुल्ताँ घर का फ़क़ीर दुनिया का पामाल क़दम भी दुनिया भर से आगे भी आँखें जो कुछ देख रही हैं उस से धोका खाएँ क्या दिल तो 'आजिज़' देख रहा है हद्द-ए-नज़र से आगे भी