वक़्त की बर्फ़ है हर तौर पिघलने वाली दिन भी है ज़ेर-ए-सफ़र शाम भी ढलने वाली इश्क़ साए की तरह साथ चिपक जाता है ये बला तो न किसी तौर है टलने वाली हम वो पहिए जो अगर साथ बराबर न चले एक मीटर भी ये गाड़ी नहीं चलने वाली एक धड़का है मिरे दिल को ख़बरदारी का एक ख़्वाहिश है मिरे ज़ेहन में पलने वाली ज़र्द कह कर नज़र-अंदाज़ किया था जिस को अब वही शाख़ हुई फूलने-फलने वाली है अजब वक़्त की होली कि हर इक चक्कर पर सूई चेहरे पे नया रंग है मलने वाली दायरा तोड़ा तो हैरत ही दर आई 'ज़ीशान' अब ये हैरत नहीं अंदर से निकलने वाली