वक़्त की क़ैद से आज़ाद कराने आए आख़िरी वक़्त मुझे मुँह ही दिखाने आए इन दिनों मेरी तबीअत में है मद-होशी सी उस से कह दो कि मिरा दर्द जगाने आए मैं ने जब प्यार की दौलत से नवाज़ा है उसे वो भी दो बोल मोहब्बत के सुनाने आए उम्र-भर साथ निभाने को कहा है किस ने वो मिरे साथ बस इक शाम मनाने आए दिल को दरिया को बड़ी देर हुई ख़ुश्क हुए कोई बादल ही मिरी प्यास बुझाने आए जब से वो रूठ गया शाद यही सोचता हूँ कब मिरा चाँद मिरे पास न-जाने आए