वस्फ़-ए-जमाल-ए-ज़ौक़ है अहल-ए-निगाह का हैरत कहूँ कि शोर कहूँ वाह वाह का अहल-ए-जुनूँ पे ज़ुल्म है पाबंदी-ए-रुसूम जादा हमारे वास्ते काँटा है राह का रखता है तल्ख़-काम ग़म-ए-लज़्ज़त-ए-जहाँ क्या कीजिए कि लुत्फ़ नहीं कुछ गुनाह का क्या कुछ जनाब-ए-शैख़ की निय्यत से था बईद मौक़ा भी दुख़्त-ए-रज़ ने दिया हो गुनाह का ऐ बर्क़ कब से इक नज़र-ए-गर्म के लिए आतश-बजाँ है दश्त में तिनका गियाह का हंगामा-ए-हयात से लेना तो कुछ नहीं हाँ देखते चलो कि तमाशा है राह का मैं हासिल-ए-नज़र हूँ तमन्ना-ए-दीद में लेता हूँ काम हर बुन-ए-मू से निगाह का 'नातिक़' गिला-पसंद है तू ग़म-जफ़ा-पसंद ऐ दाद-ख़्वाह काम है बे-दाद-ख़्वाह का