वस्ल की उन बुतों से आस नहीं कि टिके दक्षिना को पास नहीं इम्तिहान-ए-वफ़ा पे कर्ब-ए-फ़िराक़ पास हैं हाए और पास नहीं नफ़्स को मार कर मिले जन्नत ये सज़ा क़ाबिल-ए-क़यास नहीं दम में ये आना और जाना क्या आप इंसाँ हैं कुछ हवास नहीं ख़ौफ़-ए-वीराँ हुआ है ख़ाना-ए-दिल आस कैसी कि याँ तो यास नहीं का'बे में जा के क्या करें ज़ाहिद वाँ की आब-ओ-हवा ही रास नहीं शाइ'री है मिरी कि सेहर-ए-हलाल भला कह दें तो हक़-शनास नहीं पाऊँ किस से मज़ाक़-ए-शेर की दाद आज 'फ़ैज़ी'-ओ-'कालीदास' नहीं जाम-ए-ख़ुर्शीद में है आब-ए-हयात राम-रंगी का ये गिलास नहीं 'कैफ़ी' और जाम-ए-बादा से इंकार तुम को कुछ नाम का भी पास नहीं