वस्ल क्या शय है और फ़ुर्क़त क्या तुम को मा'लूम है मोहब्बत क्या मेरी आँखों ने तुम को देख लिया अब है बीनाई की ज़रूरत क्या अब उसे घर की याद आई है ढह गई इश्क़ की इमारत क्या वस्ल से दूर हो गया भौंरा फूल से उड़ गई है निकहत क्या कितने बेज़ार हो गए हो तुम इश्क़ में हो गई थी उजलत क्या कितनी रौनक़ है बज़्म-ए-फ़ुर्क़त में है 'अमन' आप की सदारत क्या