वो आज लौट भी आए तो इस से क्या होगा अब उस निगाह का पत्थर से सामना होगा ज़मीं के ज़ख़्म समुंदर तो भर न पाएगा ये काम दीदा-ए-तर तुझ को सौंपना होगा हज़ार नेज़े उधर और मैं इधर तन्हा मिरी शिकस्त का उनवाँ ही दूसरा होगा जो तेज़ धूप में सायों की फ़स्ल बोते हैं यहाँ की आब ओ हवा का उन्हें पता होगा मैं और एक क़दम उस की सम्त बढ़ जाता पता न था कि वो इतना गुरेज़-पा होगा मिरा यक़ीं है कि राह-ए-वफ़ा में मेरे ब'अद मिरा सफ़र तिरे क़दमों ने तय किया होगा