वो अब जंग-ओ-जदल कुछ भी नहीं है नहीं दश्त-ओ-जबल कुछ भी नहीं है ख़सारे का बदल कुछ भी नहीं है मगर माथे पे बल कुछ भी नहीं है अजब ख़ुश-शक्ल और ख़ुश-पोश है वो शिकन कोई न शल कुछ भी नहीं है हर इक शय आसमाँ पर है सलामत ज़मीं पर बर-महल कुछ भी नहीं है उसे भी खो के कितने मुतमइन हैं वो शय जिस का बदल कुछ भी नहीं है ग़नीमत जानिए है आज जो कुछ ये मत कहियेगा कल कुछ भी नहीं है करेंगे रुख़ उधर कैसे परिंदे शजर पे फूल फल कुछ भी नहीं है इलाही तेरी रहमत से है उम्मीद हमारा तो अमल कुछ भी नहीं है जिसे ख़ौफ़-ए-ख़ुदा हर दम है 'दानिश' उसे ख़ौफ़-ए-अजल कुछ भी नहीं है