वो अर्ज़ां तो करें जलवोें को दीवाने भी आते हैं जहाँ शमएँ जला करती हैं परवाने भी आते हैं कुछ इस अंदाज़ से आए तिरी महफ़िल में दीवाने कोई ये कह तो दे महफ़िल में दीवाने भी आते हैं ये फ़ितरत हुस्न की है वो तक़ाज़ा है मोहब्बत का वो दिल को तोड़ने के ब'अद समझाने भी आते हैं सभी सेहन-ए-चमन में फूल चुनने को नहीं आते कुछ अपने दामनों में ख़ार उलझाने भी आते हैं मोहब्बत के गुलिस्तानों में फलने-फूलने वालो इसी रस्ते में आगे चल के वीराने भी आते हैं नहीं मालूम तर्क-ए-दोस्ती के ब'अद क्यूँ महशर वो तर्क-ए-दोस्ती पर बहस फ़रमाने भी आते हैं