वो और होंगे जो वहम-ओ-गुमाँ के साथ चले हम अपनी राह पे अज़्म-ए-जवाँ के साथ चले तलाश-ए-यार में हम हर मक़ाम से गुज़रे कभी ज़मीन कभी आसमाँ के साथ चले न जाने कितनी ही सदियों के फ़ासले हैं अभी हुई है उम्र ज़मान-ओ-मकाँ के साथ चले कभी तो पाएँगे हम भी हयात की मंज़िल इसी ख़याल से उम्र-ए-रवाँ के साथ चले तमाम रात किसी अजनबी का साथ रहा सहर हुई तो दिल-ए-बद-गुमाँ के साथ चले जो फूल बन के महकते थे रहगुज़ारों में ग़ुबार बन के तिरे कारवाँ के साथ चले वो हुस्न-ओ-इश्क़ के क़िस्से हैं जिन से वाबस्ता उन्ही का ज़िक्र मिरी दास्ताँ के साथ चले जुनूँ के दोश पे रख कर चराग़-ए-हस्ती हम क़ज़ा को ढूँडने मौज-ए-रवाँ के साथ चले उसी को कहते हैं शायद नसीब की गर्दिश बहार आए तो शो'ला ख़िज़ाँ के साथ चले