वो बर्ग-ए-ख़ुश्क था और दामन-ए-बहार में था नुमूद-ए-नौ की बशारत के इंतिज़ार में था मिरी रफ़ीक़-ए-सफ़र थीं हसद भरी नज़रें वो आसमान था और मेरे इख़्तियार में था बिखर गया है तो अब दिल निगार-ख़ाना है ग़ज़ब का रंग उस इक नक़्श-ए-ए'तिबार में था अब आ गया है तो वीरानियों पर तंज़ न कर तिरा मकाँ इसी उजड़े हुए दयार में था लिखे थे नाम मिरे क़त्ल करने वालों के अजीब बात है मैं भी इसी शुमार में था मुझे था ज़ोम मगर मैं बिखर गया 'मोहसिन' वो रेज़ा रेज़ा था और अपने इख़्तियार में था