वो दिल नसीब हुआ जिस को दाग़ भी न मिला मिला वो ग़म-कदा जिस में चराग़ भी न मिला गई थी कह के मैं लाती हूँ ज़ुल्फ़-ए-यार की बू फिरी तो बाद-ए-सबा का दिमाग़ भी न मिला चराग़ ले के इरादा था यार को ढूँडें शब-ए-फ़िराक़ थी कोई चराग़ भी न मिला ख़बर को यार की भेजा था गुम हुए ऐसे हवास-ए-रफ़्ता का अब तक सुराग़ भी न मिला 'जलाल' बाग़-ए-जहाँ में वो अंदलीब हैं हम चमन को फूल मिले हम को दाग़ भी न मिला